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सफलता के सूत्र: स्वामी विवेकानंद

आह्वान
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सफलता के सूत्र

उत्तिष्ठत ! जाग्रत !

प्राप्य वरान्निबोधत!

हे युवाओं ,

उठो ! जागो !

लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं

पीछे मत देखो, आगे देखो, अनंत ऊर्जा, अनंत उत्‍साह, अनंत साहस और अनंत धैर्य तभी महान कार्य, किये जा सकते हैं ।

आज मैं तुम्हें भी अपने जीवन का मूल मंत्र बताता हूँ ,  वह यह है कि –

प्रयत्न करते रहो, जब तुम्हें अपने चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार दिखता हो, तब भी मैं कहता हूँ कि प्रयत्न करते रहो !  किसी भी परिस्थिति में तुम हारो मत,  बस प्रयत्न करते रहो!   तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य जरूर मिलेगा ,  इसमें जरा भी संदेह नहीं !

– विवेकानन्द

सफलता के सूत्र

कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव  है ऐसा  सोचना  सबसे  बड़ा  विधर्म है. अगर  कोई   पाप  है,  तो  ये  कहना कि तुम निर्बल  हो या  अन्य  निर्बल हैं…. ब्रह्माण्ड  की   सारी  शक्तियां  पहले से  हमारी हैं. वो हम ही हैं  जो अपनी आँखों  पर हाथ रख लेते  हैं  और  फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है! – विवेकानन्द

यदि जीवन में सफल होना है; जीवन में कुछ पाना है; महान बनना है; तो स्वामी विवेकानन्द के दर्शन और विचारों को जीवन में अपनाना चाहिये।

वर्तमान समय में युवाओं के सम्मुख अनेक चुनौतियाँ हैं। हर व्यक्ति प्रयत्नशील है; बेहतर भविष्य के लिए, सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए एवं अच्छे जीवन के लिए। ऐसे समय में युवाओं के आदर्श स्वामी विवेकानन्द के संदेश व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

लक्ष्य निर्धारण :

सर्वप्रथम हमें अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। स्वामी जी कहा करते थे, ‘जिसके जीवन में ध्येय नहीं है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, उसका जीवन व्यर्थ है’। लेकिन हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिये कि हमारे लक्ष्य एवं कार्यों के पीछे शुभ उद्देश्य होना चाहिए।

जिसने निश्चय कर लिया, उसके लिए केवल करना शेष रह जाता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था – जीवन में एक ही लक्ष्य साधो और दिन- रात उस लक्ष्य के बारे में सोचो और फिर जुट जाओ उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए। हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए। स्वामी विवेकानन्द जी कहा करते थे, आदर्श को पकड़ने के लिए सहस्‍त्र बार आगे बढ़ो और यदि फिर भी असफल हो जाओ तो एक बार नया प्रयास अवश्‍य करो। इस आधार पर सफलता सहज ही निश्चित हो जाती है।

आत्मविश्वास :

जीवन में जो तय किया है या जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसे प्राप्त करने के लिये आवश्यक है- अपने आप में विश्वास।  आत्मविश्वास, सफलता का रहस्य है। यदि हमें अपने आप पर ही विश्वास नही है तो हमारा कार्य किस प्रकार सफल होगा? जो भी कार्य करो, आस्था और विश्वास के साथ।

स्वामी विवेकानन्द जी कहा करते थे कि आत्मविश्वास – वीरता का सार है। सफलता के लिए जरूरी है – अपने आप पर मान करना, अभिमान करना, विश्वास और लगन के साथ जुटे रहना। धीरज और स्थिरता से काम करना – यही एक मार्ग है। यदि तुममें विश्वास है, तब प्रत्येक कार्य में तुम्हें सफलता मिलेगी। फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही। जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे। तभी महान कार्य किये जा सकते हैं।

समर्पण :

समर्पण का अर्थ है – अपने लक्ष्य के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रत्येक क्षण में उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना। किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए समर्पण अनिवार्य है।

दृढ़ निश्चय ही विजय है। युवाओं से उनका सम्बोधन था, ‘ध्येय के प्रति पूर्ण संकल्प व समर्पण रखो’। इस संसार में प्रत्येक वस्तु संकल्प शक्ति पर निर्भर है। शुभ उद्देश्य के लिए  सच्ची लगन से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं होता।

समर्पण से कार्य को पूर्ण करने की लगन ही युवाओं को सफलता प्रदान कर सकती है। स्वामी विवेकानन्द जी अक्सर कहते थे, जीवन में नैतिकता, तेजस्विता और कर्मण्यता का अभाव नहीं होना चाहिये। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सभी महान कार्य धीरे धीरे होते हैं परन्तु पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

चरित्र र्निर्माण :

संस्कार, सुविचार, संकल्प,  समर्पण व सिद्धता इस पंचामृत के ‍सम्मिलित स्वरूप का नाम है –  सफलता।  स्वामी जी ने युवावर्ग का आह्वान करते हुए कहा था कि वही समाज उन्नति और उपलब्धियों के चरम शिखर पर पहुंच सकता है जहां व्यक्ति में चरित्र होता है।

भारत की सत्य-सनातन संस्कृति, व्यक्ति के चरित्र के निर्माण में सहायक बनती है। आवश्यक है कि आप चरित्र व आचरण की महत्ता को समझें, सभ्यता, शालीनता, विनम्रता को अपनाएँ। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्ति के लिए  आवश्यक है; सद्‍गुण, सद्‍व्यवहार, सदाचार, सद्‍ संकल्प।

स्वामी विवेकानन्द जी ने युवा वर्ग को चरित्र निर्माण के पांच सूत्र दिए। आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्मज्ञान, आत्मसंयम और आत्मत्याग। उपयुक्त पांच तत्वों के अनुशीलन से व्यक्ति स्वयं के व्यक्तित्व तथा देश और समाज का पुनर्निर्माण कर सकता है।

संगठन :

वर्तमान युग संगठन का युग है। व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए कार्य करने की परम्परा जब तक प्रचलित नहीं होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों में सार्मथ्यवान् नहीं बन सकता है। वर्तमान समय में सामूहिक आत्मविश्वास के जागरण की अत्यन्त आवश्यकता है। उदात्त ध्येय के लिये संगठित शक्ति का समर्पित होना अनिवार्य है।

स्वामी विवेकानन्द जी अमरिका में संगठित कार्य के चमत्कार से प्रभावित हुए थे। उन्होंने ठान लिया था कि भारत में भी संगठन कौशल को पुनर्जिवित करना चाहिये। उन्होंने स्वयं रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर सन्यासियों तक को संगठित कर समूह में काम करने का प्रशिक्षण दिया।

इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव मे इस संसार को संगठित शक्ति ने ही बदला है।

स्वामी विवेकानन्द हमें यह प्रेरणा प्रदान करते हैं कि जीवन में सतत आगे बढते रहना हमारा कर्त्तव्य है। जीवन पथ में अनेक बाधाएँ आती हैं परन्तु , क्रमशः समस्त प्रकार की बाधाओं को दूर  कर करके, उससे ऊपर उठकर, असम्भव को भी संभव किया जा सकता है। जब-जब मानवता निराश एवं हताश होगी, तब-तब स्वामी विवेकानंद जी के उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार और दर्शन जन-जन को प्रेरणा देते रहेंगे।

आगे बढो और याद रखो….

धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म सफलता के माध्यम हैं।

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